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समुंदर और आँसू

समुंदर और आँसू ©  mulsha nkar13. All articles, scripts, poetry, prose, reviews written here are exclusive copyrights of mulshankar13. Any article, poetry, prose, story or reviews may be reused, quoted in full or as an excerpt only with attribution to "Source: mulshankar13". धरती के तकिये पर अपना सर रख समुंदर को रोते देखा है कभी? रात को जब  सब शांत सो जाते हैं! दिन भर की बातें याद कर भूली बिस्री रातें याद कर! वह बचपन जब पहाड़ों पर एक पतली धारा किल्कारियाँ मारती थी ! वह यौवन जब नदी बन समतल पर अंगराईयाँ लेती थी ! हर्ष-विषाद अपमान-सम्मान स्वार्थ-परमार्थ पक्षपात-यज्ञ! इन वेदनाओं की व्याकुलता कठिनता परंतु अर्ध-सफलता से अपने अथाह हृदय में समेटे, धरती के तकिये पर अपना सर रख समुंदर को रोते देखा है कभी? रात को जब  सब शांत सो जाते हैं! फिर भी कभी करवट लेते उसके कुछ गरम आँसू आँखों के कोनों से निकल उसके कपोलों के रेत की सुर्ख़ियों में कहीं निःशब्द छुप जाते हैं! धरती के तकिये पर अपना सर रख समुंदर को रोते देखा है कभी? रात को जब  सब शांत सो जाते हैं