मत पूछ ऐ काफ़िर
मत पूछ ऐ काफ़िर
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कोई एक मर्तबा इस दहलीज़ पर दस्तक तो देगा!
मत पूछ ऐ काफ़िर कि इन दीवारों पर इतने शीशें क्यूँ हैं
कोई रहता है यहाँ कभी उसका एहसास तो होगा!
मत पूछ ऐ काफ़िर कि आज तन्हा क्यूँ हूँ
कोई था अपना मेरा उसका क़त्ल किया तो होगा!
मत पूछ ऐ काफ़िर कि आज ज़िंदा क्यूँ हूँ
कोई क़ब्र पर मेरे कलमा पढ़े उसका इंतज़ार तो होगा!
मत पूछ ऐ काफ़िर कि आज ज़िंदा क्यूँ हूँ
कोई क़ब्र पर मेरे कलमा पढ़े उसका इंतज़ार तो होगा!
waah miyaan ! chaa gaye!
ReplyDeleteमत पूछ ऐ काफ़िर की मैं आज किराएदार क्यूँ हूँ
एक मर्तबा कोई इस दहलीज़ पर दस्तक तो देगा!
behtareen!
शुक्रिया बेईमान शायर साहब!
ReplyDeleteFrom the feel of it and whatever I understand of it, I know it is a beautiful piece of writing. But I don't know the meaning of several of the words used :(, e.g. martaba, dehleez, kalma etc. Love the 3rd para.
ReplyDeleteDear Antara, It's Urdu : martaba: time, dehleez:door step, kalma: holy muslim prayer
ReplyDeletenice piece of writing....
ReplyDeleteThanks Banik
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