गरम जलेबी
  गरम जलेबी  ©  mulsha nkar13.   All  articles, scripts, poetry, prose, reviews written here are exclusive  copyrights of mulshankar13. Any article, poetry, prose, story or reviews  may be reused, quoted in full or as an excerpt only with attribution to  "Source: mulshankar13".      माँ !   कभी  कभी  यूँ ही इस युवास्था में  बचपन की ओर करवट ले सो जाता हूँ !   आँख बंद हैं, होठों पे मुस्कान   खेल खिलौनों चीजों की!  वह कुंटे से लटकी गुड़िया   स्मरण स्मृति के धागों में !   माँ !   कभी कभी यूँ ही इस युवास्था में  लालच प्रेणित निर्मल यादों की ओर करवट ले सो जाता हूँ !    रंग बिरंगे पैजामें   रेशम्दार कुर्ता था टंगा  हुआ!  टिम टिम करते बिजली के जूते  सब थें आकांक्षाओं कि खाली मुट्ठी में!   माँ!   कभी कभी यूँ ही इस युवास्था में  उस करुणामय हठ की ओर करवट ले सो जाता हूँ!   कुंटे से लटकी गुड़िया तोड़  कुर्ते पैजामें जूते छोड़!  आज नहीं कल फिर आएंगे  भाग चलें थें गरम जलेबी के बहकावे में!   माँ!   ...
